हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण Time division and nomenclature of Hindi literature

हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण Time division and nomenclature of Hindi literature

हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण (Time division and nomenclature of Hindi literature) में।

दोस्तों इस लेख द्वारा आप हिंदी साहित्य के काल का विभाजन उसका नामकरण के साथ उनके कवियों के नाम और रचनाओं को भी जानेंगे। तो आइये शुरू करते है, यह लेख हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण:-

हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण

हिंदी साहित्य का काल विभाजन Time division of Hindi literature

हिंदी साहित्य को 4 कालों में विभाजित किया गया है

  1. आदिकाल (650ई. से 1350ई. तक)
  2. भक्ति काल (1350ई. से 1650 ई. तक)
  3. रीतिकाल (1650ई. से 1850ई. तक)
  4. आधुनिक काल (1850 से अब तक)

आदिकाल तथा नामकरण, Nomenclature and Aadikaal 

आदिकाल को वीरगाथा काल के नाम से भी जाना जाता है। हिंदी साहित्य के विभिन्न कालों के नामकरण का श्रेय जॉर्ज ग्रियर्सन नामक व्यक्ति को जाता है,

उन्होंने आदिकाल में धार्मिकता, वीरगाथात्मकता व श्रृंगारिकता की प्रधानता देखी, इसलिए इन प्रमुख बिंदुओं के आधार पर आदिकाल का नामकरण विभिन्न व्यक्तियों के द्वारा विभिन्न प्रकार से किया गया है, जैसे कि

  1. जॉर्ज ग्रियर्सन ने आदिकाल को चारण काल कहा है.
  2. मिश्र बंधु ने आदिकाल को प्रारंभिक काल के नाम से पुकारा है।
  3. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने आदिकाल को बीजवपन कहते हैं।
  4. रामचंद्र शुक्ल आदिकाल को वीरगाथा काल के नाम से पुकारते हैं।

आदिकाल में केवल दो प्रकार की प्रमुख भाषाएँ उपलब्ध थी, जिनको डिंगल व पिंगल के नाम से जाना जाता था।आदिकाल में अाल्हा छंद बहुत अधिक प्रचलन में था, यह वीर रस का सबसे बड़ा ही छंद माना जाता था।

आदिकाल को तीन भागों में विभाजित किया गया है:- 

  1. सिद्ध साहित्य :- सिद्ध साहित्य में सिद्दों की संख्या 84 बताई गई है, इन सिद्दों द्वारा जन भाषा में लिखा गया साहित्य ही सिद्ध साहित्य कहलाता है। सिद्ध कवियों की रचनाएँ दो रूपों में देखने को मिलती है, दोहा कोश तथा चर्यापद। 84 सिद्धों में सरहपा, सबरपा, कण्डपा आदि को प्रमुख माना जाता है, सबसे पहले सिद्ध पुरुष सरहपा थे।
  2. नाथ साहित्य:- 10 वीं शताब्दी के अंत में शैव धर्म एक परिवर्तित रूप में आरंभ हुआ, जिसको नाथ पंथ या हठयोग के नाम से जाना जाता था। गोरखनाथ को नाथ पंथ का प्रवर्तक माना जाता था, जिनमें नाथों की संख्या 9 बताई गई है। आदिनाथ, जालंधरनाथ, मछंदरनाथ, गोरखनाथ आदि नाथ साहित्य के अंतर्गत आते हैं।
  3. रासो साहित्य :- रासो साहित्य के सबसे प्रमुख कवि और रामचंद्र शुक्ल के अनुसार भी सबसे प्रमुख कवि चंद्रवरदाई को माना जाता है और इन्होंने पृथ्वीराज रासो हिंदी का प्रथम महाकाव्य भी लिखा है।
कुछ प्रमुख हिंदी रासो साहित्य और उनके कवि
  1. बीसलदेव रासो :- नरपति नाल्ह
  2. हम्मीर रासो :- शारंगधार
  3. परमाल रासो :- जगनिक
  4. खुमान रासो :- दलपति विजय
  5. दोहा कोश :- सरप्पा
  6. परम चिरउ :- स्वयंभू

भक्ति काल Bhaktikaal 

भक्ति काल को पूर्व मध्यकाल के नाम से भी जाना जाता है, जिसका समय 1350 ईस्वी से 1650 ईस्वी तक है। भक्ति काल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है, क्योंकि इसमें सबसे महान कवियों

ने जन्म लिया था, जिन्होंने हिंदी साहित्य को अभूतपूर्व रचनाएँ प्रदान की।  भक्ति आंदोलन की शुरुआत दक्षिण से हुई ऐसा माना जाता है, भक्ति काल को निम्न प्रकार से विभाजित किया गया है:- 

भक्ति काल को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है:- 

निर्गुण काव्यधारा :- इस काव्य धारा के अंतर्गत वे सभी कवि आते हैं, जिन्होंने निर्गुण ब्रह्म की उपासना की है।इसके भी दो भाग हैं

  1. ज्ञानाश्रयी शाखा :- इसके प्रमुख कवि कबीर दास जी हैं।
  2. प्रेमाश्रयी शाखा :- इस शाखा के प्रमुख कवि जायसी को माना जाता है।

सगुण काव्य धारा :- इस काव्य धारा के अंतर्गत सगुण ब्रह्म की उपासना की गई है, इसको भी दो प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है:- 

  1. रामभक्ति शाखा :- राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि तुलसीदास जी हैं।
  2. कृष्णभक्ति शाखा :- कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवि सूरदास है।

भक्ति काल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

  1. कबीर दास :- बीजक (साखी, सबद, रमेनी)
  2. रैदास :- बानी
  3. सुंदर दास :- सुंदर विलाप
  4. मलिक मोहम्मद जायसी :- पद्मावत अखरावट आखिरी कलाम
  5. सूरदास:- सूरसागर, साहित्य लहरी, सुरसारावली
  6. केशवदास :- रामचंद्रिका, रसिकप्रिया, कवि प्रिया, विज्ञान गीता
  7. नाभादास :- भक्तमाल
  8. नरोत्तम दास :- सुदामा चरित्र
  9. कुतुवन :- मृर्गावती
  10. मंझन :- मधुमालती

कृष्णभक्त कवि Krishnbhakt Kavi 

कृष्ण भक्त कवि वे कवि हैं, जिन्होंने भगवान श्री कृष्ण को आराध्य मानकर अपनी रचनाएँ की हैं, जिसके अंतर्गत 8 प्रमुख कवि आते हैं और उन्हें अष्टछाप के नाम से भी जाना जाता है।

अष्टछाप की स्थापना सन 1565 में विट्ठलनाथजी ने की थी, जिसके अंतर्गत सूरदास, कुंभनदास, परमानंददास, कृष्णदास, विट्ठलनाथ, छीतस्वामी, गोविंदस्वामी, चतुर्भुजदास और नंददास जी आते हैं।

रीतिकाल Reetikaal 

रीतिकाल को उत्तर मध्यकाल और श्रृंगारकाल के नाम से भी जाना जाता है। रीतिकालीन काव्य अधिकतर दरबारी संस्कृति का होता है, अर्थात इस समय पर अधिकतर कवि दरबारी कवि हुआ करते थे।

इस समय में ब्रजभाषा का पूरा विकास हुआ, इसलिए रीतिकाल को ब्रजभाषा का स्वर्ण युग भी कहा जाता है। रीतिकाल का समय 1650 ईस्वी से 1850 ईसवी के बीच का है। रीतिकाल में आचार्य कवि की परंपरा का शुभारंभ केशव दास जी ने किया था।

रीतिकाल पर प्राप्त सबसे पहला ग्रंथ कृपाराम का हिटतरंगिणी है, जो 1541 में लिखा गया है। रीतिकाल के अधिकांश कवि किसी न किसी राजा के यहाँ दरबारी कवि के रूप में ही रहते थे। रीतिकाल को तीन भागों में बांटा गया है:- 

  1. रीतिबद्ध कवि :- रीतिबद्ध कवियों ने लक्षण ग्रंथों की रचना ऋषि परंपरा के अनुसार की थी, जिनमें प्रमुख रीतिबद्ध कवि के रूप में केशवदास, चिंतामणि, मतिराम, सेनापति, देव और पद्माकर आदि आते है।
  2. रीतिसिद्ध कवि :- रीतिसिद्ध कवि के अंतर्गत केवल बिहारी लाल का ही प्रमुख स्थान दिया गया है।
  3. रीतिमुक्त कवि:- रीतिमुक्त कवि रीतिकाल के कवि हैं, जिन्होंने रीतिमुक्त परंपरा का निर्वाह करते हुए काव्य की रचना की है, इसलिए इन्हें रीतिमुक्त कवि का नाम प्रदान किया गया है। रीतिमुक्त कवि के अंतर्गत घनानंद, ठाकुर, आलम बोधा आदि को समाहित किया गया है।

प्रमुख रीतिकालीन कवि और उनकी रचनाएँ 

  1. केशवदास :- रसिकप्रिया, कवि प्रिया
  2. देव :- भाव बिलास, सुख सागर, तरंग अष्टयाम, रसविलास
  3. घनानंद :- सुजान हित, वियोग बेली, इश्क लता, प्रेम सरोवर
  4. पद्माकर :- जब विनोद, प्रमोद पचासा, गंगा लहरी
  5. भूषण:- शिवराज भूषण, शिव बावनी, छत्रसाल
  6. चिंतामणि :- कविकुल, कल्पतरू, रसविलास
  7. बिहारी :- बिहारी सतसई
  8. वृंद:- वृंद सतसई

आधुनिक काल Aadhunik yug 

आधुनिक काल हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा काल माना जाता है, क्योंकि यह 1850 ईसवी से अब तक चल रहा है। आधुनिक काल को उद्भव और विकास की दृष्टि से निम्न भागों में विभाजित किया गया है:- 

  1. भारतेंदु युग 1850 ईस्वी से 1900 ईसवी तक
  2. द्विवेदी युग 1980 से 1920 ईस्वी तक
  3. छायावादी युग 1918 से 1936 ईस्वी तक
  4. प्रगतिवादी युग 1936 से 1943 ईस्वी तक
  5. प्रयोगवादी युग 1943 से अब तक

भारतेंदु युग Bhartendu yug 

भारतेंदु युग का नामकरण भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाम पर किया गया है, जिनके पिता का नाम गोपाल चंद्र गिरधर दास था, जो अपने समय के एक महान कवि हुआ करते थे। इस काल का समय 1850 ईस्वी से 1900 ईसवी तक का रहा। इस समय हिंदी बोली का सर्वाधिक विकास हुआ था।

हिंदी एक नए चाल में ढली सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अंतर्गत सामाजिक कुरीतियों के सुधार की भावना विकसित हुई. भारतीय युवाओं की दुर्दशा को लेकर कई अनुभूति युक्त कविताएँ लिखी गई।

भारतेंदु युग के अंतर्गत प्रमुख कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रताप नारायण मिश्र, बद्रीनारायण चौधरी, बालकृष्ण भट्ट, अंबिकादत्त व्यास थे। 

भारतेंदु युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ 

  1. भारतेंदु हरिश्चंद्र :- भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी, प्रेम जोगनी, नील देवी, सत्य हरिशचंद्र
  2. बालकृष्ण भट्ट :- नूतन ब्रह्मचारी, सौ अजान एक सुजान, आचार विडंबना
  3. प्रताप नारायण मिश्र :- कली कौतुक, कली प्रभाव,  हटी हम्मीर
  4. अंबिकादत्त व्यास :- बिहारी बिहार, ललिता गोसंकट

द्विवेदी युग Dwedi yug 

द्विवेदी युग के विकास का श्रेय महावीर प्रसाद द्विवेदी को  जाता है, जिसका समय 1900 से 1920 ईस्वी रहा। इस युग में हिंदी साहित्य के विविध रूपों और शैलियों का विकास हुआ गद्य पद्य में खड़ी बोली और पूर्ण प्रतिष्ठा का श्रेय श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी

को जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने ही ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ी बोली में काव्य रचना के लिए अपने युग के कवियों को प्रेरित किया था। द्विवेदी जी ने 17 वर्षों तक सरस्वती पत्रिका का संपादन भी किया।

द्विवेदी युग के प्रमुख कवि और उनकी कविताएँ 

  1. महावीर प्रसाद द्विवेदी :- कान्यकुब्ज, अवला विलाप
  2. अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध:- प्रियप्रवास, वैदेही वनवास चुभते चौपदे रस कलश
  3. मैथिलीशरण गुप्त :- भारत भारती, जयद्रथ वध, पंचवटी, साकेत, यशोधरा
  4. श्रीधर पाठक:- कश्मीर सुषमा
  5. जगन्नाथदास रत्नाकर :- उद्धव शतक, गंगावतरण गंगा लहरी

राष्ट्रीय काव्यधारा के प्रमुख कवि 

माखनलाल चतुर्वेदी एक भारतीय आत्मा के नाम से लोकप्रिय हो गए यह स्वतंत्रता सेनानी भी थे। हिमकिरीटनी, हिम तरंगिणी, माखनलाल चतुर्वेदी के प्रमुख काव्य माने जाते हैं।

सियाशरण गुप्त, मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे, इनकी रचनाओं पर गांधीवाद का प्रभाव देखा जाता है।

बालकृष्ण शर्मा को नवीन के उपनाम से जाना जाता है। यह राष्ट्रीय काव्य के प्रमुख कवि हैं, इनकी रचनाएँ, उर्मिला, अपलक, रश्मीरेखा कुमकुम हैं।

सुभद्रा कुमारी चौहान राष्ट्रीय काव्यधारा की प्रमुख कवियत्री मानी जाती हैं। इनकी झांसी की रानी पर लिखी रचना बहुत ही लोकप्रिय भी हुई है।

छायावादी युग Chhayavadi yug 

छायावादी युग को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने नई काव्यधारा का तृतीय उत्थान कहा है, जिसका काल 1918 से 1936 के बीच का रहा। छायावादी युग में आत्मानुभूति की प्रधानता की अभिव्यक्ति हुई है। छायावाद के प्रमुख चार स्तंभ के रूप में जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,

सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा को माना जाता है। छायावादी युग का प्रवक्ता जयशंकर प्रसाद को माना जाता है। इनकी प्रथम कविता संग्रह कानन कुसुम है, जबकि इनका कवि जीवन का आरंभ कलाधर नाम के उपनाम से हुआ था।

कामायनी जयशंकर प्रसाद की अंतिम रचना मानी जाती है। प्रसाद की अन्य रचनाओं में आँसू, झरना, लहर आदि भी प्रमुख स्थान रखते हैं।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने मुक्त छंदों की रचना सबसे पहले की थी। उन्होंने जूही की कली, अनामिका, परिमल, गीतिका, सरोज, स्मृति, राम की शक्ति पूजा आदि कविता संग्रह उपलब्ध कराए हैं।

सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति के सुकुमार कवि के नाम से भी जाना जाता है, जिनकी प्रमुख रचनाओं में उच्छवास, ग्रंथि, बिना पलक, गुंजन, काला और बूढ़ा चांद, चिदंबरा आदि आती हैं।

प्रगतिवादी युग Pragtivadi yug 

प्रगतिवादी युग में जनता की वास्तविक स्थिति का चित्रण हुआ है। सामाजिक यथार्थ प्रकृति प्रेम नारी का चित्रण भी इसमें प्रमुख भूमिका रखता है। इस युग का समय 1936 से 1943 ईस्वी माना जाता है।

केदारनाथ अग्रवाल सच्चे अर्थों में जनवादी कवि हैं। इनकी प्रकृति प्रेम और समाज की कविताएँ अधिक प्रभावशाली मानी जाती हैं। केदारनाथ के प्रमुख कविता संग्रह के अंतर्गत गुल मेहंदी, आत्मगंध, फूल नहीं रंग बोलते हैं, कहे केदार खरी खरी आदि प्रमुख हैं।

नागार्जुन प्रमुख जनवादी कवि के रूप में प्रगतिवादी युग में सामने आए हैं, नागार्जुन की प्रमुख प्रगतिवादी कविताओं में तुम्हारी दंतुरित मुस्कान, सिंदूर, तिलकित भाल, पाषाणी और बादल को घिरते देखा है, प्रसिद्ध हैं।

त्रिलोचन की कविताओं में किसानी जीवन विभिन्न रूपों में चित्रित होता दिखाई देता है। मिट्टी की बारात, लोचन का सबसे प्रूफ कविता संग्रह माना जाता है।

प्रयोगवादी युग Prayogvadi yug 

प्रयोगवादी कविता का आरंभ सन 1943 में हुआ था, जिसका आरंभ करने का श्रेय अज्ञेय द्वारा संपादित तार सप्तक है, जिसके अंतर्गत सात कवियों गिरिजाकुमार माथुर,  मुक्तिबोध, नेमीचंद जैन, भारत भूषण, अग्रवाल, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती की कविताएँ शामिल की गई हैं।

  1. प्रथम तार सप्तक का समय 1943 है।
  2. द्वितीय तार सप्तक का समय 1951 है।
  3. तृतीय तार सप्तक का समय 1959 है।
  4. चतुर्थ तार सप्तक का समय 1979 है।

प्रयोगवादी कवि की प्रमुख रचनाएँ 

  1. सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय :- हरी घास क्षणभर, बावरा अहेरी, इंद्रधनुष, कितनी नावों में कितनी बार, आंगन के पार द्वार
  2. गजानन माधव मुक्तिबोध:- चांद का मुंह टेढ़ा, भूरी भूरी खाक धूली
  3. शमशेर बहादुर सिंह :- चुका भी हुँ नहीं में, बात बोलेगी, काल तुझसे होड़ है मेरी
  4. भवानी प्रसाद मिश्र:- सतपुड़ा के जंगल गीत फरोश टूटने का सुख
  5. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना :- कुआनो नदी,  खुटियों पर टंगे लोग, बांस का पुल, एक सोनी नाव, काठ की घंटियां
  6. धर्मवीर भारती :- ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष, कनुप्रिया
  7. केदारनाथ सिंह :- जमीन पक रही है, यहां से देखो अकाल में सारस अभी बिल्कुल अभी।

दोस्तों आपने यहाँ पर हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण (Time division and nomenclature of Hindi literature) पढ़ा। आशा करता हुँ, आपको लेख अच्छा लगा होगा।

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